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संतोष छत्तीसी
( ५४३ )
राग द्वष कियां रडवडियइ, पडियइ नरक मझार जी। दुख अनंता लहियइ दुरगति, तेह तणउ नहीं पार जी । सा.।२८। जिहां जीव जायइ तिहां कणि पामइ, सकल कुटुंब परिवार जी। पण साहमी नउ सगपण किहां थी, ए दुर्लभ अवतार जी। सा.।२६। दृषम काल तणे परभावे, हुइ मांहो मां विषवाद जी। तौ पणि तुरत खमावी लीजइ, पंडित गुरु परसाद जी । सा.३० सुगुरु वचन मानइ ते उत्तम, श्रावक सुजस लहंत जी । भद्रक जीव आसन्न सिद्धिगामी, अरिहंत एम कहंत जी । सा.॥३१॥ जिम नागोर क्षमा छत्तीसी, कर्म छत्तीसी मुलतान जी। पुण्य छत्तीसी सिद्धपुर कीधी, श्रावक नइ हित जाण जी। सा.३२॥ तिम संतोष छत्तीसी कीधी, लूणकरणसर माहि जी । मेल थयउ साहमी मांहो मांहि, आणंद अधिक उच्छाह जी। सा.३३। पाप गयउ पांचां वरसां नउ, प्रगट्यउ पुण्य पडूर जी । प्रीति संतोष वध्यउ मांहो मौहे, पाज्या मंगल तूर जी । सो.३४। संवत सोल चउरासी वरसइ, सर माहे रह्या चउमास जी। जस सोभाग थयउ जग माहे, सहु दीधी सावास जी । सा.॥३५॥ युगप्रधान जिनचंद सूरीसर, सकलचंद तसु शिष्य जी । समयसुन्दर संतोष छत्तीसी, कीधी संघ जगीस जी । सा.३६।
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