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( ५४२ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि रेवती ऊपर रीस करी बहु, महाशतक अहीर जी । गौतम मूकी नइ मिच्छामि दुक्कड, दिवरायो महावीर जी। सा.।१७) सारंग साह धरी मद मच्छर, बांध्यउ कोचर साह जी । पणि देपाल नइ वचने मूक्यउ, साहमी जाणि उच्छाह जी। सा.१८ लक्ष्मण राम नई घर थी काढ्या, कपिले भूडो कीध जी। पणि साहमी भणी राम संतोष्यउ,अादर मान धनदीधजी।सा.१६। बरस बरस मांहे त्रिण वेला, वस्तुपाल तेजपाल जी। साहमी वच्छल सबला कीधा,भक्ति जुगति सुविसाल जी। सा.॥२०॥ बेउ इंद्र बुलाया कोणिक, मारौ चेडो राय जी। इंद्र कहै सुण अम्हे किम मारू, साहमी सगपण थायजी । सा..२१॥ साहमी सगपण नवउ करी नइ, प्रीति संतोष विशेष जी। आद्रकुमार भणी प्रतियोध्यउ, अभयकुमारे देख जी। सा.॥२२॥ खमत खामणा करउ खरे मन, मूकी निज अभिमान जी। मृगावती नइ चंदनवाला, पाम्यउ केवलज्ञान जी । सा.॥२३॥ पण कुंभार ने चेला वाला, मिच्छामि दुक्कडं टालि जी। मन शुद्ध विन कदि मुक्ति नहोइ, निश्चय दृष्टि निहालि जी। सा.२४॥ सास जंवाई वाला कीजइ, अलिया गलिया जाण जी। सामायिक पडिकमणो सूजइ, जीवत जन्म प्रमाण जी । सा.॥२५॥ सामायक पोसो पड़िकमणो, नित सझाय नवकार जी ! राग द्वष करतां सूझइ नहीं, न पड़े ठाम लगार जी । सा.।२६। समता भाव धरी नइ करतां, सहु किरिया पडै ठाम जी। अरिहंत देव कहइ आराधक, सीझड़ वंछित काम जी । सा.।२७।
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