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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
वागी घड़ी ते पाछी नावई करउ धरम तर जप नई नेम; समयसुंदर कहइ सहु को सुणिज्यो,घड़ियालउबोलइ छइ एम ।२३। धरम क्रतूत करिबुते करिज्यो, ताणी तूणी नई ततकाल; मन परिणाम अनित्य आउखु, पापी जीव पड़इ जंजाल । मत विलंब करउ ध्रम करता आवी पड़ड़ अंतराय विचाल; समयसुंदर कहइ सहु को समझउ, घड़ी मांहि वाजइघड़ीयाल।२४। केहनई पुत्र अस्त्री नहि केहनई केहनइं अन्न तरणी नहि चूणि केहनई रोग सोग घर केहनई, केहनई गरथनी ताणां तणि । के विधवा के विरहिणी दीसइ, माथई भार वहई के गणि समयसुंदर कहई संसार महिई, कहउ नइआज सुखी छइ कणी।२५॥ बेटा बेटी बइयरि भाई बहिनी तणउ नहि क्लेस लगार; विणज व्यापार मसाकति का, नहि उपाडिवउ माथइ नहि भार । सखर उपासरै बइसी रहिवउं, नमणि करई मोटा नर नारि; समयसुंदर कहइ जउ जाणइ तउ आज सुखी काइंक अणगार।२६। सूरिज कोढ़ी चंद कलंकी मंगल तणी उदंगल रुक्खा बुध तउ जड़ विरोध बापसुनास्तिक गुरु तिहां केहउसुक्ख । सनि पांगलउ पितानई वयरी राहु देह पखइ धरई मुक्ख; समयसुंदर कहइ सुक्र कहइ हुँ काणउ पणि पंचसुं नहिं दुक्ख ।२७। महावीर नई काने खीला, गोवालिए ठोक्या कहिवाय; द्वारिकादाह पाणी सिर प्राण्यउ, चंडाल नइं घरि हरिचंद राय। लखमण राम पांडव वनवासि, रावण बध लंका लटाय; समयसुंदर कहइ कहउ ते कहुं पणि,करमतणी गति कही न जाय।१८)
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