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(५१८)
समयसुन्दरकृति कुसुमाञ्जलि
सूत्र मांहि एक दसवैकालिक जती मांहि दुपसह मूरिजांणि । समयसुदर कहइ कुण जाणइ रे कहउ गछ रहिस्यइ परमाणि।१३। गछनायक हुयई अति गिरुया भारी खमानइ अति गंभीर; चालई आप भलई आचारई तउ को गिणइ हटक नई हीर। फाडि तोड़ि नइ गछ गमाडइ दिन नइ राति रहई दिलगीर; समयसुदर कहइ ते गछनायक, तरकस मांहे थोथा तीर ।१४।
आसा तना सूतरनी उपजइ कथक अप्रीति ते कही नी जात; परमारथ एक आंपन पीछई बीजानई पणि करई व्याघात । रली रोहिणी विकथा करती, वारंता करनी परतात; समयसुंदर कहइ सहुको सुणिज्योबखांण मांहि मत करिज्यो बात १५ कोलो करावउ मुंड मुंडावउ, जटा धरउ को नगन रहउ; को तप्प तपउ पंचागनि साधउ कासी करवत कष्ट सहउ । को भिक्षा मांगउ भस्म लगावउ मौन रहउ भावइ३ कृष्ण कहर, समयसुदर कहइ मन सुद्धि पाखइ,मुगति सुख किमही न लहउ।१६।
आव्यां ऊठि ऊभी थइयइं दीजइ आदर मांन घणां; भली परि भोजन पाणि दीजई, कोज पाय कमल नमणां । कुटंब कारिमा लयां अनंता, स्वारथ नां सहु प्रेम पणां, समयसुंदर कहइ सही करि जाणउ सगपण ते जे साहमी तणां।१७। काम काज विणजई व्यापारई, सारउ दिन सगलइ हांदिवउ; धरम नियम विहांथो थायइ थायइ पणि जउ मन ढिवउं।
१ साध एक. २ बात. ३ को. ४ भाव विनात उ.५ ऊनइ थायइ ।
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