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________________ समय सुन्दर कृतिकुसुमाञ्जलि श्रावक कहइ सुगाल, सहु धान थया सुंहगा; दरसणी कहै दुकाल, अम्हे जाणां छां मुँहगा । आदरसुँ को अन्न, अजी आप नही अम्हनैः श्रावक पिता समान, ति कहीछह तुम्हनै । दया मया दिल धर्म घरी, श्रावक सार सहु करइ; 'समयसुंदर' कहै अय्यासीया, धीरज तउ सहू को धरइ | ३४ | ( ५१२ ) कहै एम, म करो तुम्ह चिंता मुनिवर; करौ क्रिया अनुष्ठान, तप जप संजम तत्पर । वांचो सूत्र - सिद्धांत, भलउ धरम मारग भाखउ; महावीरनो वेश, रीति रूडीपरि राखउ । वखाण खाण थास्यै वली, श्रावक सार सहु करै, 'समयसुंदर' कहे सत्यासीया, धीरज तउ सहु को धरै |३५| दुरभिद महादुकाल, वरस सत्य । सीयउ बूरो; दीठा घणा दुकाल, पणि एहवउ को न हूबो । सत्यासीया- सरूप, दीठउ मह तेहवो दाख्यउ गया मूत्र गइंद, रह्यौ भगवंत तौ राख्यउ । रागद्व ेष नही को माहरइ, मह ख्याल -विनोदइ ए कीयउ; 'समयसुंदर' कहइ सहु सुखी, कवि कल्लोल आणंद करउ | ३६ | Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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