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________________ ( ५०६ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि पाटण अम्हदाबाद, खरो सूरत खंभाइत; लाइक लखपति लोक, वणिक पिण हुँता विलाइत । जगडू भीमोर शाह, उठ्यो को नाम उगारइ सबलउ सत्रकार, मांडि महियलि साधारइ । केतक दिवस दीधउ कीए, पिण थिर थोभ न को थयउ; 'समयसुन्दर' कहइ सत्यासीया, तेतई तूं व्यापी गयउ ।१६। मूत्रा घणा मनुष्य, रांक गलीए रडवडिया; सोजो वल्यउ सरीर, पछई पाज मांहे पडिया । कालइ कवण वलाई, कुण उपाडइ किहां काठी तांणी नाख्या तेह, मांडि थइ सगली माठी। दुरगंधि दशोदिशि ऊछली, मडा पड्या दीसइ मूत्रा; 'समयसुन्दर' कहइ सत्यासीया, किण धरि न पड्या कुकुआ।१७) __ जैनाचार्य जो स्वर्गवासी हुएश्रीललितप्रभु सरि, पाटण पूनमिया सुगुरु, प्रभु लहुडीपोसाल, पूज्य बे पीपलिया-खरतर । गुजराती गुरु बेउ, बडउ जसवंत नइ केसव; शालिवाडीयउ सरि, कहूं कितो पूरो हिसव । सिरदार घणेरा संहा, गीतारथ गिणती नहीं, 'समयसुन्दर' कहइ सत्यासीया, तु हतियारउ सालो सही।१८॥ २ पूरो. ३ शाहनी जोडी. ४ बालक. ५ मांड. ६ सद्गुरु । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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