SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 662
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ औपदेशिक गोतानि सांझी गीतम् ढाल-गुरु जी रै बधामणदु-एहनी सांझि रे गाई सांझी रे, म्हारी सांझी हुया रंगरोल रे। संघ सहु को हरखियउ, वारु दीधा नवल तंबोल रे । सां.।१। गुण गाया अरिहंत ना, वलि साध तणा अधिकार रे। गुणतां भणतां गावतां, सांभलतां हरख अपार रे। सां.२। घरि घरि रंग बधामणा, कोइ घरि घरि मंगलाचार रे। घरि घरि आणंद अति घणा,श्री जिन शासन जयकार रे। सां.३। सांझी गीत सोहामणा, ए मई गाया एकवीस मारे। समयसुंदर कहइ संघ नइ, नित पूरवउ मनह जगीस रे । सां.।४। राती जागी गीतम राग-धन्याश्री गायउ गायउ री राती जगउ रंगइ गायउ । मन गमती मिलि सहिय समाणी, मनगमतउ गवराज्यउरी। रा.१॥ देव अनइ गुरु ना गुण गाया, दोहग दरि गमायउ । सफल जनम समकितथयउ निरमल,भवियण केमनभायउरी। रा.२ चतुर सुजाण सुण्यउ इक चित्ते, भलउ भलउ भेद सुणायउ। पुण्यवंत श्रावक परिघल चित, तुरत तंबोल दिवायउ री । रा.३॥ गीत पंचास अनोपम गाय, आणंद अंगि न मायउ । चतुर्विध संघथयउ अति हर्षित, समयसुन्दर गुण पायउ री । रा.४। * पंचवीसो रे ॥ जगदीशो रे। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy