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(४६० ) समयसुन्दरकृतिकुप्चमाञ्जलि उदगम दोष ए सोलह कह्या,
अपादान पणि सोलह लह्या । दस एषणा ना कह्या केवली,
पांच दुषण मांडलि ना वली ।४६। सगला मिलि सइंतालीस दोस
जिण सासण माहें परिघोष । साधनइ जोइयइ सूध आहार,
श्रावक नइ साचउ व्यवहार ।४७/ वत्तच्चार सुरा गो मंस,
ए दृष्टांत कह्या अप्रशंस । भद्रबाहु स्वामी नी किद्ध,
पिण्ड निर्यक्ति मांहे प्रसिद्ध ।४। रूप वर्ण बल पुष्टि नइ काज,
आहार निषेध्यउ जु श्री जिनराजि । ज्ञान दर्शन चारित्र निमित्त,
देह नइ अउठंभ घइ समचित्त ।४६। तर्या तरइ नइ तरिस्यइ तेह,
सूझता नी खप करिस्पई जेह । तेहनइ वंदना कर त्रिकाल,
जे श्री जिन आज्ञा प्रतिपाल १५० संवत सोल एकाणु समइ,
सझाय कीधी सहु नइ गमइ ।
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