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आहार ४७ दूषण सज्झाय
वसादि के करि खरडच अन्न,
विहरइ लित दोष (४१) धरमउ मन्न । ए० |३७| विहरतां थी करण भूमि नखाय,
ते छर्द्दित दूषण (४२) कहिवाय | ए० | ३८ |
दस एषणा ना दूषण कथा, साध तीए सूधा संकादिक बिहुँ नह उपजइ,
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दायक ग्राहक नइ ते जइ | ३६ | खीर खंड घृत संजोजना (४३),
धन करि नह जीमइ जे एक मना |४०| संजम नउ निरवाहण थाय,
तेही अधिक प्रमाण (४४) कहाय । ४१ । सखर आहार वखाणइ घणु,
जिम तर दूषण अंगार (४५) तणुं । ४२ । कव खोड़इ भुंडउ आहार,
धूम दोष (४६) तण अधिकार | ४३ | वेयण प्रमुख छ कारण विना,
लेतां दोष अकारण (४७) तथा । ४४ । मांडलि ना ए दूषण पंच,
तेह तणउ बोल्यउ पर खंच । स्वाद तणउ जे करिस्यइ त्याग, जेहनइ मनि साचउ वयराग ॥४५॥
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सरदह्या ।
(४८६)
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