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शुद्ध श्रावक दुष्करमिलन गीतम्
(४७१ )
निंदक थायइ निच्चइ नारकी,
लोक कहइ चंडालो जी । श्रावक न करइ निंदा केहनी,
घई नहीं कूड़उ आलो जी ॥११॥ क. ।। साध तणा छल छिद्र जोयइ नहीं,
भाखड़ भगवान भाखो जी। अम्मा पिउ सरिखा श्रावक कह्या,
ठाणांग सूत्र नी साखो जी ॥१२॥ क. ॥ विण विहराव्या श्राप जिमइ नहीं,
दाखीजइ दान सूरो जी। आहार पाणी विहरावइ सूझतउ,
वस्त्र पात्र भरपूरो जी ॥१३॥ क. ॥ एक टंक जिमड एकासणइ,
सचित तणउ परिहारो जी। चारित लेवा उपरि खप करइ,
पालइ सील उदारो जी ॥१४॥ क. ॥ न्यायोपार्जित वित्तइ नीपनउ,
श्रावक द्यइ जु आहारो जी । तउ अम्ह थी सूध संजम पलइ,
आहार निसउ उदगारो जी ॥१५॥ क. ॥ उत्तम श्रावक नी संगति करी,
साध नइ पणि गण थायो जी।
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