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________________ पारकी होड निवारण गीतम् (४३३ ) पुण्य तई राज नई रिद्धि सुख पामियइ, पुण्य पाखइ न रोटी न दोटी । समयसुंदर कहइ पुण्य कर प्राणिया, पुण्य थी द्रव्य कोटान कोटी ॥पा०॥३॥ मरण भय निवारण गीतम राग-आसावरी मरण तणउ भय म करि मूरिख नर, जिण वाटे जग जाइरे। तीर्थकर चक्रवर्ती अतुल बल, तिण पणि खिण नरहाइ रे।म.।१। तप जप संजम पालि त मधुं, ध्यान निरंजन ध्याइ रे। समयसुंदर कहइ जिम तुं जिवड़ा, परभव सुखियउ थाइ रे।म.।१। आरति निवारण गीतम राग-गूजरी मेरी जीयु आरति कोइ धरइ । जइसा वखत मई लिखति विधाता, तिण मई कछु न टरइ मे.१॥ केइ चक्रवर्ती सिर छत्र धरावत, किइ कण मांगत फिरइ । केइ सुखिए केइ दुखिए देखत, ते सब करम करइ ।मे।२॥ आरति अंदोह छोरि दे जायुरा, रोवत न राज चरइ । समयसुंदर कहइ जो सुख वंछत, तउ करि भ्रम चित्त खरइ ।मे।३।। - - - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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