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________________ (४२८ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि प्रमाद त्याग गीतम् प्रातः भयउ प्रात भयउ, प्राणी जीउ जागि रे । आलस प्रमाद तज, धर्म ध्यान लागि रे ॥ खोटी माया जाल एह, प्रभु गुण गावो रे । कछुक उपगार करो, जेह थी सुख पावो रे ॥प्रा०॥१॥ हाथ दीने पांव दीन्हे, बोलवै कुवेण रे । सुणवै कुं कान दीने, देखवै कु नैण रे॥प्रा०॥२॥ दिन दिन पाए एह, ते तो घटतउ आयुरे । तेरो जन्म सरानो जात, लोहा कैसे ताउ रे ॥प्रा०॥३॥ केतो धन माल एतो, स्वारथियउ संसार रे । करणी तुं विन नहीं, पावे भव पार रे ॥प्रा०॥४॥ अंतर विचार करउ, समयसुंदर कहइ । अंतर प्रकाश विना, शिवसुख कुण लहै ॥प्रा०॥५॥ प्रमाद त्याग गीतम जागौ रे जागौ रे भाई परभात थयउ । धरम सूरज उग्यउ अंधारउ गयउ |भा०जा०॥१॥ श्रालस प्रमाद ऊंघ कीधा क्युं जुड़े। चवद पूरवधर निगोद पड़े रेभा० जा०॥२॥ रूड़ी परि राई प्रायश्चित पड़िकमणौ करो। किरीया करी पँजी पूछी काजउ ऊधरौ |भा० जा०॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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