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________________ (४२२) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि कीधा पाप न छूटियइ रे, पाप थकी मन वाल । काने बिहुं खीला ठव्या रे, तउ वीर तणइ गोवाल जि.।४। मरण सहु नइ सारखउ रे, कुण राजा कुण रांक । पणि जायइ जीव निसंबलउ रे, एहिज मोटउ बांक जि.।। जे पाखइ सरतुं नहीं रे, जे साथइ प्रतिबंध । ते माणस उठि गया रे, तउ धरम पखइ सहु धंध ।जि.।६। जन्म मरण थी छूटियइ रे, न पड़ीजइ गर्भावास । समयसुन्दर कहइ ध्रम थकी रे, लहिया लील विलास ।जि.७ जीव प्रति बोध गीतम् राग-अ.साउरी-सिंधुड़ जीवडारे जिन ध्रम कीजियइ, ए छइ परम आधारो रे। अवर सहु को अथिर छइ, सकल कुटुंब परिवारो रे ।जी.।१। दस दृष्टांत दोहिलउ, वलि मनुष्य भव सार । ते पुण्य जोगे पामियउ, जीव जन्म आलिम हारो रे ।जी.।२। अति अथिर चंचल आउखड, रमणीक यौवन रूप । चक्रवर्ती सनतकुमार ज्यु, जीव जोई देह सरूपो रे ।जी.।३। चक्रवर्ती तीर्थकर किहां, किहां गणधर गुण पात्र । ते पण विधाता अपहरया, तो अवर केही मात्रो रे ।जी.।४। जीव रात्रि दिवस जे जाइ छ, वलि नवि आवै तेह । तप जप संजम आदरी, करी सफल प्रातम देहो रे ।जी.श Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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