SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 582
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जिनसागरसूरि गीतानि सहकार । भरतार | म. |२| मधुकर मोउ रे मालती, कोइल जिम महिगल मोउ रेवा नदी, सतीय मोही मानस मोउ रे हंसलउ, चंद सुं मोह्यउ चकोर । मृगलउ मोउ रे नाद सुं, मेह सु मोउ रे मोर | म. | ३ | जिनसागर सूरि सारखा, उत्तम ए गुरु दीठ | मन रंग लागो बाई माहरउ, जेहो चोल मजीठ | म. |४| तारइ ते गुरु आपणा, जे हवा दरियs जिहाज । समयसुन्दर कहइ सांभलउ, सहु ना जिम सरइ काज | म.|५| ( ४१३ ) (१२) ढाल - दुमुह नाम राजा घर रे गुणमाला पटराणि ( बीजा प्रत्येक बुद्ध ना खंड नी ) श्रथवा, फिट जीव्यु थारु रामला रे जसूड़ी लूखउ खाय, एहनी. न्याति चउरासी निरखतां रे, ओसवाल उतम न्याति । बुद्धिवंत कुल बोथरा रे, बीकानेर विख्यात रे ॥ १ ॥ अम्हारा गुरु जिनसागर सूरि एह । शांत दांत शोभा घणी रे, कठिन क्रिया करइ तेह रे | अ. | २| मात मृगादे उरि धरचउ रे, वच्छराज साह मल्हार । जिनसिंह सूरि पटोधरु रे, खरतरगच्छ सिणगार | | ३ | बोलह थोडूं बइठा रहइ रे, वाच सूत्र सिद्धान्त । धरई एकान्त । . |४| राति ऊभां काउसग्ग करइ रे, ध्यान फरस भला अति फुटरा रे, आउलि चांपा फूल । समयसुन्दर कहइ सांभलउ रे, बिहुं माहें कुछ बहु मूल | अ. ५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy