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(२) श्री जिन सिंहसूरि गीतानि-
(३८१ )
मात चांपलदे उरि धरयो जी,
सखि चांपसी साह मल्हार रे। मन मोहन महिमा निलउ जी,
सखि चोपड़ा साख शृङ्गार रे॥चा.॥२॥ वइरागइ व्रत आदरयो जी,
सखि पंच महाव्रत धार रे। सकल कलागम सोहता जी,
सखि लब्धि विद्या भण्डार रे॥चा.॥३॥ श्री अकबर आग्रह करी जी,
सखि कास्मीर कियउ विहार रे। . साधु आचारइ साहि रंजियउ जी,
सखि तिहां वरतावि अमारि रे ।।चा.॥४॥ श्रीजिनचंद्र सरि थापिया जी,
सखि आचारिज निज पटधार रे। संघ सयल आस्या फली जी,
सखि खरतरगच्छ जयकार रे॥चा.॥५॥ नंदि महोच्छव मांडियउ जी,
सखि श्री कर्मचंद मंत्रीस रे। नयर लाहोर वित्त वावरइ जी,
सखि कवियण कोड़ि वरीस रे ॥चा.॥६॥ गुरु जी मान्या रे मोटे ठाकुरइ जी,
सखि गुरु जी मान्या अकबर साहि रे।
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