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श्रो जिनचंद्रसूरि प्रालिजा गीतम्
(३८७ )
युग प्रधान जगि जागतउ पू०,
श्री जिणचंद मुणिंद ॥०॥ सानिध करजो संघ नइ पू०,
समयसुंदर आणंद ॥०॥ ११ ॥ तु० ॥ श्री जिनचन्द्रसूरि आलिजा गीतम
__ राग-आस्या सिंधुड़ो थिर अकबर तूं थापियउ, युगप्रधान जग जोइ । श्री जिनचंद सूरि सारिख उ सारि०, कलि मई न दीसइ कोइ ।। ऊमाह धरी नइ तात जी हूं आवियउ रे, हो एकरसउ तु आवि । मन का मनोरथ सहु फलइ माहरा रे,होदरसणि मोहिं दिखाउराऊ. जिन शासन राख्यउ जिणइ, डोलतउ उमडोल । . . समझायउ श्री पातिसाह सदगुरु खाट्यउ तई सुबोल ।३। ऊ.। आलेजो मिलवा अति घणउ, आयउ सिंध थी एथ । नगर माम सहु निरखिया, कहो क्यूंन दीसइ पूज केथ ।४। ऊ.। साहि सलेम सहु अम्बरा, भीम सूर भूपाल । चीतारइ तूनइ चाह सुं हो, पूज्य जो पधारउ किरपाल ।। ऊ.। बाबा आदिम बाहुबलि, वीर गौतम ज्यू विलाप । मेलउ न सरज्यउ माहरो मा०, ते तउ रह्यउ पछताप ।६। ऊ.। साह बड़उ हो सोम जी, राख्यउ कर्मचंद राज । अकबर इंद्रपुरि आणियउ, आस्तिक वादी गुरु आज ।७। ऊ.।
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