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( ३७६ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि श्राविका उपधान सहु वहई पू०,
मांड यउ नंदि मंडाण |पू०॥ माला पहिरावो प्रावि ने पू०,
जिम हुवे जनम प्रमाण पू०॥६॥ तु०॥ अभिग्रह वांदण ऊपरइ पू०,
कीधा हुँता नर नारि ॥३०॥ ते पहुँचाओ वेहना पू०,
वंदावो एक बार पू०॥७॥ तु.॥ पर्व पजूसण वहि गयउ पू०,
लेख वांछे सहु कोय ॥३०॥ मन मान्या आदेश द्यउ,
शिष्य सुखी जिम होय ॥पू०॥८॥तु०॥ तुम सरिखउ संसार मई पू०,
देखु नहीं को दीदार |पू०।। नयण तृप्ति पामइ नहीं पू०,
__ संभार सौ वार ॥पू०॥ ६ ॥ तु.॥ मुझ मिलवा अलजउ घणो पू०,
तुम तो अकल अलक्ष पू०॥ सुपनि में आवि वंदावजो पू.,
हुँ जाणिस परतक्ष पू०१०॥ तु० ।
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