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________________ महोपाध्याय समयसुन्दर ( १५ ) - अध्येता समयसुन्दर ने इन दोनों विद्वानों के समीप किन किन ग्रन्थों का अध्ययन किया, इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता है । किन्तु कवि की जिस प्रतिभा का परिचय हमें तत्प्रणीत. द्वितीय कृति अष्टलक्षी से मिलता है; उससे अनुमान करने पर यह सिद्ध है कि आपने वाचकों से सिद्धहेमशब्दानुशासन, अनेकार्थ संग्रह, विश्वशंभुनाममाला, काव्यप्रकाश, पंच महाकाव्य आदि ग्रन्थों के साथ साथ जैन आगमिक साहित्य का और जैन दर्शन का विशेषतया अध्ययन किया था। इनके ज्ञानार्जन की योग्यता के सम्बन्ध में हम अगले प्रकरणों में विचार करेंगे । अस्तु । देते हुए आचार्यश्री ने वा० महिमराज को हर्षविशाल आदि मुनियों के साथ काश्मीर भेजा। काश्मीर के प्रवास में वा० महिमराज की अवर्णनीय उत्कृष्ट साधुता और प्रासंगिक एवं मार्मिक चर्चाओं से अकबर अत्यधिक प्रभावित हुआ। उसी का फल था कि वाचकजी की अभिलाषानुसार गजनी, गोलकुण्डा और काबुल पर्यन्त अमारि ( अभयदान) उद्घोषणा करपाई और मार्ग में आगत अनेक स्थानों ( सरोवर ) के जलचर जीवों की रक्षा कराई । काश्मीर विजय के पश्चात् श्रीनगर में सम्राट को उपदेश देकर आठ दिन की अमारी उद्घोषणा कराई थी। (देखें, जिनचन्द्रसूरि प्रतिबोध रास ) "शुभ दिनइ रिपुबल हेलि भेजी, नयर श्रीपुरि उतरि । अमारी तिहां दिन आठ पाली, देश साधी जयवरी॥" (जि० अ०प्र० रास) "श्रीपुरनगर आई, अमारि गुरु पलाई; मछरी सबई छोराइ, नीकउ भमउ भइयारी।" (कु० पृ० ३६२) __वाचकजी के चारित्रिक गुणों से भावित होकर, स० अकबर ने आचार्यश्री को निवेदन कर बड़े ही उत्सव के साथ में आपको Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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