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________________ ( १४ ) महोपाध्याय समयसुन्दर ध्याय 1 के चरण कमलों में रहकर किया था। यही कारण है कि कवि अपनी सांप्रथम रचना भावशतक और अपनी विशिष्ट कृति अष्टलक्षी में इन दोनों को मेरी विद्या के एक मात्र गुरु' श्रद्धा-पूर्वाक कहता हुआ नजर आ रहा है:"श्रीमहिमराजवाचक-वाचकवर-समयराजपुण्यानाम् । मद्विद्य कगुरूणां, प्रसादतो सूत्रशतकमिदम् ।।" । [भावशतक] "श्रीजिनसिंहमुनीश्वर-वाचकवर-समयराज--गणिराजाम् । मद्विद्य कगुरूणामनुग्रहो मेऽत्र विज्ञेयः ॥" [अष्टलक्षी पृ० २८] T उपाध्याय समयराज भी आचार्य जिनचन्द्रसूरि के प्रमुख शिष्यों में से हैं। आपके सम्बन्ध में कोई ऐतिह्य वृत्त प्रान नहीं है। 'राज' नंदी को देखते हुए आपकी दीक्षा भी जिनसिंहसूरि के साथ ही या आस-पास स० १६२३ में ही हुई होगी। आपकी प्रणीत निम्न कृतियां प्राप्त हैं :-- १. धर्ममंजरी चतुष्पदी (१६६२) मेरे संग्रह में । २. पर्युषण व्याख्यान पद्धति ( नाहटा संग्रह में ) ३. जिनकुशलसूरि प्रणीत शत्रु अय ऋषजिनस्तव अवचूरि (मेरे संग्रह में ) ४. साधु-समाचारी (आगरा विजय धर्म लक्ष्मी ज्ञान मन्दिर) आदि कई संस्कृत भाषा के स्तोत्र । राजजी ने अष्टोत्तरी शान्तिस्नात्र करवाया; जिसमें लगभग एक लाख रुपया व्यय हुआ था और जिसकी पूजा की पूर्णाहुति ( आरती ) के समय शाहजादा ने १००००) रु० चढ़ाये थे। ....... काश्मीर विजय यात्रा के समय सम्राट की इच्छा को मान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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