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( ३७० )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
श्रीजिनचन्द्रसूरिस्वप्नगीतम् सुपन ला साहेलड़ी रे, निसि भरि सूती रे आज । सुंदर रूप सुहामणा रे, दीठा श्री गच्छराज ॥१॥ सुगुरु औ मूरति मोहनवेलि,
. श्रीपूज्य जी चालइ गजगति गेलि ॥ांकणी ॥ गाम नगर पुर विहरता रे, आव्या जिण चंद सरि । श्री संघ साम्हउ संचरह रे, वाजइ मंगल तूरि ।।सु०॥२॥
आन्या पूज्य उपासरइ रे, सुललित करइ रे वखाणि । संग सहु ध्रम सांभलइ रे, धन जीव्यं परमाण ।।स०॥३॥ संख सबद सखि मई सुण्यउ रे, ऊभी जोऊँ रे वाट । आंगणि मोरी आविया रे , परिवरथा मुनिवर थाट ।।स०॥४॥ धवल मंगल गायइ गोरडी रे, होड़इ हरख न माय । नारि करइ गुरु न्यूछणा रे, पडिलाभइ मुनिराय ।।स०॥शा सुपन एह साचउ हुज्यो रे, सीझइ वंछित काज । श्रीजिन चंद्र सूरि वांदियइ रे, समयसुंदर सिरताज ॥१०॥६॥
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(गौड़ी जी का भंडार उदयपुर )
श्री जिनचंद्रसूरि छंद अवलियउ अकबर तास अंगज, सबल साहि सलेम । सेख अबुल आजम खान खाना, मानसिंह सँ प्रेम ॥
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