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श्री जिनचन्द्र सूरि चन्द्राउला गीतम्
( ३६६ )
विनयवंत परिवार तुम्हारउ, भाग फल्यउ सखि आज हमारउ । ए चन्द्राउलउ छह अति सारउ,
जिन चन्द सूरि सुणिज्य वीनति रे, तुम्हे
श्री पूज्य जी तुम्हे वेगि पधारउ ॥ १ ॥ जी रे, तुम्हे जग मोहन वेलि व अम्हार देसि, गिरुया गच्छपति रे ॥ श्रकणी ॥ वाट जोवतां श्रविया रे, हरख्या सहु नर नारो रे । संघ सहु उच्छव करह रे, घरि घरि मंगलाचारो ॥ घरि घरि मंगलाचारो रे गोरी, सुगुरु वधावउ बहिनी मोरी । ए. चंद्राउल सांभलज्यो री हुँ बलिहारी पूज जी तोरी ॥२॥ अमृत सरिखा बोलड़ा रे, सांभलतां सुख थायो । श्रीपूज्य दरसण देखतां रे, अलिय विघन सवि जायो ॥ अलिय विघनसवि जाय रे दूरह, श्रीपूज्य वांद उगमते सूरह । ए चंद्राउ लउ गाउं हजुरइ, तउ मुझ आस फलइ सवि नूरइ ॥ ३ ॥ जिण दीठां मन ऊलसह रे, नयणे अमिय झरंति । ते गुरु ना गुण गावतां रे, वंछित काज सरंति ।। छित काज सरंति सदाई, श्री जिण चंद सूरि वांदउ माई | ए चंद्राला भास महंगाई, प्रीति समयसुन्दर मनि पाई ॥४॥ इति श्री युगप्रधान जिनचंद्रसूरीणां चंद्राउला गीतं संपूर्णम् ॥१६॥
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