________________
श्री द्रौपदी सती भास
( ३४३ )
छम्मास सीम आंबिल किया रे, राख्यु सील रतन्न रे। पाली आणी वलि पांडवे रे, पणि श्रीकृष्ण जतन्न रे।।पं.। सील पाली संजम लियउ रे, पांचमइ गई देवलोकि रे। माहविदेह मइ सीमस्यइ रे, सील थकी सहु थोक रे।४।पं.। द्र पद रायतणी तणया रे, पांच पांडव नी नारि रे। समयसुन्दर कहइ द्रपदी रे, पहुँती भव तणइ पारि रेशपं.।
(१) श्री गौतम स्वामी अष्टक प्रह ऊठी गौतम प्रणमीजइ, मन वंछित फल नउ दातार । लवधि निधान सकल गुण सागर,श्रीवद्धमान प्रथम गणधार । प्र.१॥ गौतम गोत्र चउद विद्यानिधि, पृथिवी मात पिता वसुभूति । जिनवर वाणी सुण्या मन हरखे, बोलाव्यो नामे इन्द्रभूति । प्र.२। पंच महाव्रत ल्याइ प्रभु पासे, ये त्रिपदी जिनवर मनरंग। श्री गौतम गणधर तिहां गूथ्या, पूरव चउद दुवालस अंग । प्र.३। लब्धे अष्टापद गिरि चडियउ, चैत्यवंदन जिनवर चउवीस । पनरेसै तीडोत्तर तापस, प्रतिबोधि कीधा निज सीस ।प्र.४। अद्भुत एह सुगुरु नो अतिसय, जसु दीखइ तसु केवल नाण। जाव जीव छठ छठ तप पारणइ,आपण पइ गोचरीय मध्यान्ह । प्र.॥ कामधेनु सुरतरु चिन्तामणि, नाम मांहि जस करे रे निवास। ते सदगुरु नो ध्यान धरंता, लाभइ लक्ष्मी लील विलास । प्र.६।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org