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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
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श्री सुभद्रा सती गीतम् मुनिवर अाव्या विहरता जी, झरती दीठी आंखि । जीभ संघाति काढियउ जी, तरणं ततखिण नाँखि ॥१॥ जग माहे सुभद्रा सती रे, सती रे सिरोमणि जाण । विनयवंत श्रावक सुणउ जी, सील रयण गुण खाण ॥ज..। तिलक रंग लागउ तिहांजी, मुनिवर भाल विसाल । दुसमण लोक कलंक दियउ जी, काउसग्गिरही ततकाल ज.।२। सासण देवत इम कहइ जी, म करे चिंत लगार । ताहरउ कलंक उतारिस्युं जी, जिन सासन जयकार ॥ज. ॥३॥ काचे तांतण सूत्र नइ जी. चालणी काढय नीर। चंपा बार उघाडियउ जी, सीले साहस धीर ।।ज. ॥४॥ मन वचने काया करउ जी, सील अखंड संसार । समयसुंदर वाचक कहइ जो, सती रे सुभद्रा नार (ज. ॥शा
श्री द्रौपदी सती भासढाल-मांगी तूगी रे वलभद्र जइ रह्या रे, एहनी. पांच भरतारी नारी द्र पदी रे, तउ पणि सतीय कहाय रे । नारी नियांणुं की, भोगबह रे, करम तणी गति काइ रे।११ पं./ जुधिष्टिर नई पासइ हुंती रे, देवता आणी दीध रे। पदमनाभइ घणु प्रारथी रे, पणि सत साहस कीध रे ।।पं.।
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