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________________ श्री राजुल रहनेमि गीतम् ( ३३६ ) श्री राजुल रहनेमि गीतम् राजमती मन रंग, चाली जिण वंदन हे राजुल चाह स। साधवी सील सुचंग, गिरनारि पहुंता हे राजुल गहकती । १॥ मारगि बूठा मेह, चीवर भीना हो राजुल चिहुँ गमा' । गईय गुफा मांहि गेह, २साइलउ उतारचउ हे राजुल सुंदरी ॥२॥ देखि उघाड़ी देह, प्रारथना कीधा हो रहनेमि पाडुई । अदभुत जोवन एह, सफल करीजइ हे राजुल सुन्दरी ॥३॥ साधवी कहइ सुण साध, विषय तणा फल हो रहनेमि विषसमा। आपइ दुख अगाध, दुर्गति वेदन हो रहनेमि दोहिली ॥४॥ चतुर तुं चित्त विचार, आपे केहवह कुलि हो रहनेमि ऊपना। इण वातइ अणगार, लौकिक न लहियइ हो रहनेमि लोकमइ ॥५॥ साधवी वचन सुणि एम, पाछउ मन वाल्यउ हो रहनेमि पापथी। कुवचन कह्या मई केम,अति पछताणउ हो रहनेमि आप थी।६। अरिहंत चरणे आवि,पाप आलोया हो रहनेमि आपणा । खिण मांहि करम रूपावि, मुगति पहुंतउ हो रहनेमि मुनिवरु ।७) राजमती रहनेमि, सील सुरंगा हो सहु को सांभलउ । जायइ पातक जेम, भाव भगति हो समयसुन्दर भणइ ।८। ॥ इति रहनेमि गीतम् ॥ १ दिसा. २ माधवी उत स्थ उ हे राजुल साइलउ. ३ पाछिल्या. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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