SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 498
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री दवदंती सती भास चांदलिया संदेस रे, कहे म्हारा कंतइ रे, थारी अबला कर रे अंदेश | ० नाहलिया विणी रे नारि हूं क्युं रहुं रे | आंकणी || हो वार्लिभ मई नइ वारियउ, वा० रे, हो जूटइ रमिवा तँ म जाई । हो राज हारी तूं निसरघउ, नी० रे, वन मांहि गयउ विलखाइ ॥ २शव०|चा० ॥ हो नल तुझ सुं हूं नीसरी सुनी० रे, हो गमिलीधर दुख श्राध | हो तँ मुझ नइ मँकी गयउ, मुरे, हो इवड़उ किसउ अपराध || ३ |इव । चा । हो सूती मँकी कांइ सती, कांइ सती रे, प्रमदा न जाणी तई पीर । हो हाथे जिण परी हुँती, परणी हुँती रे, हो चतुर कपाउ किम चीर ॥ ४ च. चां ॥ हो कि जागी लगी रिवा, भूरि वा ० रे, हो प्रिउ तँ न दीठउ रे पासि । हो नि वनि जो तँ नइ बालहा, वा० रे, हो साद किया सउ पंचास || ५|सा. चौ. | हो निरति न पामी थारी नाहला, ना० रे, हो पग पग मृगली रे पूठि । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ( ३२६ ) www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy