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( ३२८ )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
रिषिदत्ता कहइ ते मित्र आ हूं,
भेद काउ थयउ सुक्खु रे ॥१४॥रि०॥ रिषिदत्ता मांगइ थांपणि वर,
रुकमणि सं करउ रंग रे। रिषिदत्ता नीं देखउ रूड़ाई,
देखउ सील सुचंग रे॥१॥रि०॥ रिषिदत्ता प्रिय से सुख भोगवी,
लीधउ संजम भार रे। केवल न्यान लघु तप जप करी,
पाम्यउ भव नउ पार रे ॥१६॥ रि०॥ रिषिदत्ता राणी रूड़ी परि,
पाल्यु निरमल सील रे। समयसुंदर कहइ मुगति पहूँती,
लांधां अविचल लील रे ॥१७॥ रि०॥
॥ इति रिषिदत्ता गीतम् ॥ श्रीदवदंती सती भास
हो सायर सुत सुहामणा, सुहामणा रे,
. हो सांभलि सुगुण संदेस । हो गगन मंडल गति ताहरी, ताहरी रे,
हो देखइ समला तू देस ॥१॥
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