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श्री संयती मधु गीतम्
(३२१ )
श्री संयती साधु गीतम्
ढाल-बे बांधव वांदण चल्या, एहनी कंपिल्ला नगरी धणी, संजती राजा नामो रे। चतुरंग सेना परिवर यउ, गयउ मृगचरिजा कामो रे ॥१॥ संजती नइ क्षत्री मिल्यउ,दृष्टान्त कही दृढ़ कीधउ रे। राज रिधि छोड़ी करी, इए राजा व्रत लीघउ रे ॥२॥ मृग देखि सर मकियउ, ते पड़ यउ साध नइ पासो रे। हा मन साध हण्यउ हुवइ,तिण उपनउ मुनित्रासउरे ॥३॥ साध कहइ मत बीहजे, मुझ थी अभया दानों रे । अभय दान हिव आपितु, सुख दुख सहु नइ समानोरे ॥४॥ प्रतिबूधउ रिधि परिहरी, आण्यउ मनि उल्लासो रे। संजम मारग आदर यउ, गद्द भिलि गुरु पासो रे ॥ ५॥ मारग मई खत्री मिल्यउ, सुणि संजत सुविचारोरे।। हूं मोटउ रिधि मई तजी, मत करइ तु अहंकारो रे ॥६॥ बीजे पण बहु राजवी, छोड़ी रिधि अपारो रे । तप संजम करी आकरा पाम्यउ भव नउ पारो रे ॥ ७॥ भरत सगर मघवा भला, चक्रवर्ती सनत कुमारो रे । शांति कुंथु अरनाथ ए, तीर्थकर अवतारो रे ॥८॥ महा पदम हरिषेण जय, दसारणभद्द करकंडू रे । दुमुह नमी नइ नग्गई, उदायन राय अखण्डू रे ॥६॥
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