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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
अम्हे अपराध न को कियउ, सांभलि त भरतार । निपट न दीजइ रे छेहलउ, अबला कुण आधार ॥४॥न०॥ सनतकुमार मुनिसरू, नाण्यउ नेह लगार । काज समार यउ रे आपणउ, समयसुन्दर कहइ सार ॥शान।
इति श्री सनतकुमार चक्रवर्ती गीतम् ॥ २४ ॥
श्री सुकोशल साधु गीतम् साकेत नगर सुखकंद रे, सहदेवी माता नंद रे। गढ़ माहे कीघउ फंदरे, सुकोसलउ बाल नरिंद रे ॥१॥ साधु सकोसलउ रे, उपसम रस नउ भंडार । जिण लीधउ संजम भार,जिण पाम्यो भव नउ पार ।। आं०॥ कीर्तिधर नउ कियउ घात रे, सहदेवी पापिणी मात रे । सुकोसलइ जाणी बात रे,मुझ नइ भलउ तात संघात रे॥शासा.॥ व्रत लीधउ तात नइ पास रे,चितउड़ रह्यउ चउमासि रे। तप संजमलील विलास रे, तोड़इ क्रम बंधण पास रे॥३॥सा.।। बागणि आवी विकराल रे,सविलूरचंतनु सुकुमाल रे। मुनि वेदन सही असराल रे,केवल पाम्यउ ततकाल रे ॥४॥सा.।। सोना ना दीठा दांत रे, जाण्यउ पूरब विरतांत रे । अणसण लीधउ एकांत रे, बाघण पण थइ उपसांत रे ॥शासा.।। सुकोशलउ कर्म खपाय रे, मुगति पहुँतउ मुनिरायरे । नाम लेतां नवनिधि थाय रे, समयसुंदर वांदइ पाय रे ॥६॥सा.॥
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