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( ३१६ )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
जा कतला,
कंता विण नारि किसी एकली,
थोडइ पाणी छीजइ मछली । कहउ बात कहुँ प्रियुड़ा केतली,
प्रीतड़ी संभारउ प्रियु पिछली ॥३॥ २०॥ विलसी धन कोड़ी ते बात टली,
तजी नारी तणी संगति सगली । परभव दुरगति वेदन दुहिली,
बोलइ मत कोसा ते बात वलि ॥४॥र०॥ प्रतिवोधी कोश्या प्रीति पली,
मनमथ तई जीतउ अतुल बली । थूलभद्र मुनिवर तेरी जाऊं बली,
समयसुन्दर कहइ मेरी आस फली ॥१॥र०॥
स्थूलिभद्र गीतम व्हाला स्थूलिभद्र हो स्थूलिभद्र व्हाला, एक करू अरदास हो हां.
प्रीति संभालउ पाछली । तुम्ह बिण खिण न रहाय हो,हां.
क्यू जीवइ जल विण माछली ॥१॥वा.यू.।। मिलतां सुं मिलियइ सही हो,हां०
चित अंतर जेम चकोरड़ा । वा० ।
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