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श्री स्थूलिभद्र गीतम् ( ३११ ,
. भमर भमंता जोइ । साजणिया साजणिया वउलावी वलता चालतां रे,
धरती भारणि होय ॥प्री.।२। कागलियउ कागलियउ लिखतां भीजइ आंसुए रे,
आवइ दोषी हाथि । मनका मनका मनोरथ मन माहे रहइ रे,
__ कहियइ केहनइ साथि ॥त्री.३। इण परि इण परि कोसा थूलभद्र बूझवी रे,
पाली पूरव प्रोति । सीयल सोयल सुरंगी अोढाड़ी चूनड़ी रे,
समयसुदर प्रभु रीति ॥पी.॥४॥ इति श्री स्थूलिभद्र गीतम् ।। ४३ ॥ श्री स्थूलिभद्र गौतम
राग-सारंग प्रीतड़िया न की जइ हो नारि परदेसियां रे,
खिण खिण दाझइ देह । वीछड़िया वाल्हेसर मलवो दोहिलउ रे ।
सालइ सालइ अधिक सनेह ।प्री.।१॥ आज नइ तउ आव्या काल उठि चालवु रे,
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