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( २६४ ) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि धरमे चलायउ नवि चलइ,
मासुर देवता आय रूड़ा राजा ॥ २॥१०॥ पारेवउ सींचाणा मुखे अवतरी, ... पड़ियं पारेवउ खोलामांय रूड़ा राजा । राख राख मुझ राजवी,
मुझनइ सींचाणउ खाय रूड़ा राजा ॥ ३ ॥१०॥ सींचाणउ कहइ सुणि राजिया,
ए छह माहरउ आहार रूड़ा राजा । मेघरथ कहइ सुण पंखिया,
हिंसा थी नरक अवतार रूड़ााखी ॥ ४ ॥१०॥ सरणइ अाव्यु रे पारेवड़उ,
नहीं आप निरधार रूड़ा पंखी। माटी मंगावी तुज्झ नइ देवु,
तेहनउ तूं कर आहार रूड़ा पंखी ॥५॥१०॥ माटी खपइ मुझ एहनी,
कां वली ताहरी देह रूड़ा राजा। जीव दया मेघरथ वसी,
सत्य न मेले धरमी तेह रूड़ा राजा ॥६॥१०॥ काती लेई पिण्ड कापी नइ,
ले मांस तू सींचाण रूड़ा पंखी।। त्राजुए तोलाबी मुझ नई दियउ,
एह पारिवा प्रमाण रूड़ा राजा ।। ७ ॥१०॥
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