________________
श्री दशारण भद्र गीतम्
एहवी,
इन्द्र वादी प्रसंसा करी धन्य कृतपुण्य तूं साध मोटउ । पण जन्म जीवितव्य सफलउ कीयउ, यांगम्पउ बोल कीधउ न कोटउ ||८||०|| दसणभद करम क्षय करिय मुगति गयउ, एह अभिमान साचउ कहीजs : समयसुन्दर कहइ उत्तराध्ययन मई, साधना
नाम थी निस्तरीजइ || ६ ||६० ॥
श्री धन्ना ( काकंदी ) अणगार गीतम
सरसति सामण वीनवु, मागू एकज सार । एक जीभे हुं किम कहूँ, एहना तप नो नहीं पार ॥ १ ॥ गुणवंत ना हूँ गुण स्तव, धन धन्न अणगार ॥ श्रकणी ॥ निरदोष नांखीजतो लीइं, पट काया आधार ॥ गु० ॥ २ ॥ सुख संयम बीजो नहीं, जग मांहि तच्च सार |
संजम भार ॥ गु०॥ ३ ॥ यौवन बेस ।
जन्म मरण दुख टालवा, लीधउ बचीस रंभा तजी, जीत्यउ विकट as दोय वश कर्या, श्री जिनवर उपदेश || गु० ॥ ४ ॥ मयण दंत लोह ना चणा, किम चावस्यै कंत ।
मेरु माथ करी चालवू, खड़गधार हो पंथ ॥ गु०॥ ५ ॥
Jain Educationa International
( २८३ )
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org