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( २८०)
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
हरि बांधउ हाथी थी ऊतरी,
त्रिएह प्रदिक्षण दीधो जी । कृष्ण महाराज परसंसा करी,
जन्म सफल तई कीधो जी ॥४॥ अढा०॥ त्रैलोक्यनाथ तीर्थकर ताहरू,
श्री मुख करइ वखाणो जी । तूं धन्य तू कृतपुण्य मोटो जती,
जीवित जन्म प्रमाणो जी ॥शा अढा० ॥ कृष्ण नी मनियावट देखि करी,
भद्रक नइ थयो भावो जी। सिंह केसरिया मोदक सूझता,
पडिलाभ्या प्रस्तावो जी ॥६॥ अढा० ॥ ढंढण रिषि पूछयु भगवंत नइ,
__ अभिग्रह पूगउ मुझो जी। कृष्ण तणी ए लब्धि कहीजियइ,
लब्धि नहीं ए तुज्झो जी ॥७॥ अढा०॥ पारकी लवधि न लेऊ लाडया,
परिठवतां धरयउ ध्यानो जी । चूरतां च्यारे क्रम चूरियां,
पाम्यु केवल न्यानो जी ॥८॥ अढा०॥
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