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चिलातीपुत्र गीतम्
( २७५ )
उत्तराध्ययने ए काउ,,
सूत्र मांहे हे च्यारे प्रत्येक बुद्ध । सः । समयसुन्दर कहइ मइ साधना,
गुण गाया हे पाटण पर सिद्ध ।स।५॥
श्री चिलातीपुत्र गीतम् पुत्रो सेठ धन्ना तणी, सुसुमा सुन्दर रूपो रे । चिलातीपुत्र करइ कामना, जाण्यउ सेठ सरूपो रे ॥१॥ चिलातीपुत्र चित मांहि वस्य उ, उपसम रस भंडारोरे यां। निश्चल मेरु तणी परइ, सूर धीर सुविचारो रे ॥राचि०॥ सेठ नगर थी काढियउ, पल्लीपति थयउ चोरो रे । पांचसइ चोरां सँ परिवरय उ,करम करइ कठोरो रे ॥३॥चि०॥ एक दिवस मारी सुसुमा, मस्तक हाथ मां लीधउ रे। साधु समीपे धर्म सुणी, मस्तक नांखी दीधउ रे ॥४॥चि०॥ उपसम विवेक संवर धरयउ,काउसग माहे कीड़ी परोल्यउ रे। काया कीधों चालणो, तो पण मन नवि डोल्यउ रे ॥५चि०॥ दिवस अढी वेदना सही, आठमउ देवलोक पावइ रे । चिलातिपुत्र जगि चिर जीवउ, समयसुंदर गुण गावइ रे॥६॥चि०॥
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