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________________ कर जोड़ी हो करूं चरण प्रणाम कि, श्री इला पुत्र गीतम् · साध नुं ध्यान धरू सदा | १७ | ० | कियां । समयसुन्दर गीत करि दीयउ | १८|०| इति इलापुत्र गीतम् ॥ ११॥ ( २ ) श्री इलापुत्र सझाय नाम इलापुत्र जाणिय, धनदत्त सेठ नउ पूत । नटवी देखी रे मोहियउ ते राखड़ घर सूत ॥ १ ॥ करम न छूटइ रे प्राणिया, पूरव नेह विकार । निज कुल छोड़ी रे नट थयउ, नाणी सरम लगार कि० | २ | इक पुर आयउ रे नाचवा, उंचउ वंस विवेक । तिहां राय जोवा रे आवियउ, मिलिया लोक अनेक |क० | ३ | दोय पग पहिरी रे पावड़ी, वंश चड्यो गज गेलि । निरधारा ऊपरि नाचतंउ, खेलइ नव नवा खेलि |क० | ४ | ढोल बजावर रे नाटकी, गावइ किन्नर साद 1. पाय तलि घूघरा घम घमइ, गाजइ अंबर नाद कि० | ५ | कयामती हो भलउ रायसंघ साह कि, थिरादरइ आग्रह श्रमदाबाद हो ईदलपुर मांहि कि, १ आदर Jain Educationa International ( २६१ ) For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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