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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि .
संबुज्झह किं बुज्झह, नहिं छइ राज नउ लागोजी। वयर विरोध वारु नहीं, वालउ मन वयरागो जी ॥२॥ सं.॥ ए अवसर वलि दोहिलउ, माणस नई अवतारो जी। आरिज देस उत्तम कुल, पडवडी इंद्री अपारो जी॥३॥ सं.।। धरम सांभलिवू दोहिल, सरदहणा वलि तेमो जी। कां वांछउ राज कारिमउ, प्रतिबूझउ नहिं केमो जी ॥४॥ सं.॥ पुण्य कियां विण प्राणिया, परभवि पहुँचस्यइ जेहोजी। बोधि जलहिस्यई नहीं, भमस्यइंभव मांहि तेहोजी ॥५॥.॥ राति दिवस जे जायई छई, पाछा नावइ तेहो जी। खिण ख्रिण त्रूटई आउखु, खीण पडइ वलि देहो जी ॥६॥सं.।। राज ना काज रूड़ा नहीं, तुच्छ छइ जेहना सुक्खो जी। भेदन छेदन ताड़ना, नर तणां, बहु दुखो जी ॥७॥ सं.। गरभ रह्यां माणस गलइ, बालक वृद्ध जुवाणो जी। सींचाणउ झड़पइ चिड़ी, पणि चालइ नहीं प्राणोजी | ८ |सं०। अथिर जाणी इम आउखू, किम कीजइ परमादो जी। . नरकां न राज्य न वांछियइ,ते मांहि नहिं को सवादो जी।।सं। कुटुंब सह को कारिम, पुत्र कलत्र परिवारो जी। स्वारथ विण विहड़इ सहु, कुण केहनउ आधारो जो ।१०।सं। भवनपती व्यंतर वली, जोतषी वैमानिक देवो जी।... चक्रवर्ती राणा राजवी, बलदेव नइ वासुदेवो जी ।११०सं०।
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