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श्री आदीश्वर १८ पुत्र प्रतिबोध गीतम्
(२५३ )
श्री आदीश्वर ९८ पुत्र प्रतिबोध गीतम् शांतिनाथ जिन सोलमउ, प्रणमुं तेहना पाय । दरसन जेहनु देखतां, पातक दूरि पुलाय ॥१॥ सूगडांग सूत्रइ कह्या, ए बीजइ अझयण । वैताली नामइ वली, वीतराग ना वयण ॥२॥ एहु तणि उतपति कहुं, नियुक्ति नई अणुसार । भद्रबाहु सामी भणइ, चउद पूरबधर सार ॥३॥ श्री भ्रष्टापद आविया, आदीसर अरिहन्त । साध संघाति परिवरचा, केवल ज्ञान अनन्त ॥४॥ "इण अवसरि पाव्या तिहां, अट्ठारए सउ पुत्र । वांदी नइ करइ वीनति, तात सुणउ घर सूत्र ॥५॥ भरत थयउ अति लोभियउ, न गिण्यउ बांधव प्रेम । राज उदाल्या अम्ह तणा, हिव कहउ कीजइ केम ॥६॥ "राज काज महिलां घणं, यह दुर्गति ना दुख । ते भणी ते उपदेस दय, जिम ए पामइ सुख ॥७॥ पुत्र भणी प्रतिबोधिवा, ए अध्ययन कहति । अट्ठाएँ सुत सांभलइ, उगारी अरिहन्त ॥८॥
ढाल-धन धन अयवंती सुकुमल नाइ, एहनी ढाल । आदीसर इम उपदिसई, ए संसार असारो जी। अंगार दाहक नी परि, तृपति न पामइ लगारो जी॥१॥सं.॥
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