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________________ ( २३४ ) समयसुन्दरकृतिकसुमाञ्जलि उज्जनी नगरी धनी, ते थयउ संप्रति राय। जातिस्मरण जाणियउ, ए रिद्धि पुण्य पसाय ॥४॥ पुण्य उदय प्रगट्यउ घणउ, साध्या भरत त्रिखण्ड । जिण पृथ्वी जिन मंदिरे, मण्डित कीधी अखण्ड ॥शा वलि तिण गुरु प्रतियोधियो, थयउ श्रावक सुविचार । मुनिवर रूप करावियउ, अनार्य देश विहार ॥६॥ बेसै तिड़ौत्तर वीर थी, संवत प्रबल पडूर । पद्म प्रभु प्रतिष्ठिया, आर्य सुहस्ती सूरि ॥७॥ माह तणी सुदि आठमी, शुभ मुहूरत विचार । ए लिपि प्रतिमा पूठे लिखी, ते वांची सुविचार ॥८॥ ढाल-तीजी मूलनायक प्रतिमा वली, सकल सुकोमल देहो जी। प्रतिमा श्वेत सोना तणी, मोटो अचरज एहो जी ॥१॥ अर्जुन पास जुहारिया, अर्जुन पुरि सिणगोरो जी । तीर्थकर तेवीसमउ, मुक्ति तणउ दातारो जी ॥२॥ १० ॥ चन्द्रगुप्त राजा थयउ, चाणिक्यइ दीधउ राजो जी। तिण ए विंब भरावियउ, सारचा उत्तम काजो जी ॥३॥०॥ महावीर संवत थकी वरस, सतर सउ वीतो जी। तिण समै चवद पूरव धरू, श्रुत केवलि सुविदीतो जी ॥४॥०॥ भद्रबाहु सामी थया, तिण कीधी प्रतिष्ठो जी। आज सफल दिन माहरउ, ते प्रतिमा मंइ दीठो जी ॥शा अ०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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