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श्री घंधाणी तीर्थ स्तवनम् (२३३ ) मूलनायक रे श्री पद्म प्रभू पासजी,
इक चौमुख रे चौवीसटउ सुविलास जी ।। सुविलास प्रतिमा पास केरी, बीजी पणी ते वीस ए। ते मांहि काउसग्गिया बिहुं दिशि, बेउ सुन्दर दीसए । वीतरागनी चउवीस प्रतिमा, वली बीजी सुन्दरु । सगली मिली नै जैन प्रतिमा, संतालीस मनोहरु ॥३॥
इन्द्र ब्रह्मा रे ईसर रूप चक्रेश्वरी, इक अंबिका रे कालिका अर्द्ध नाटेश्वरी । विन्यायक रे जोगणी शासनदेवता,
पासे रहइ रे श्री जिनवर पाय सेवता ॥ सेरिता प्रतिमा जिण भरावी, पांच पृथ्वी पाल ए। चन्द्रगुप्त संप्रति बिन्दुसार, अशोकचन्द्र कुणाल ए॥ कंसाल जोड़ी धूप धाणौ, दीप संख भृगार ए। त्रिसठिया मोटा तदा काल ना, एह परिकर सार ए ॥४॥ ..
ढाल-दूसरी मूलनायक प्रतिमा भली, परिकर अभिराम ।। सुन्दर रूप सुहामणउ, श्री पद्म प्रभु स्वाम ॥१॥ श्री पदम प्रभु सेवियइ, पातक दूरी पुलावइ । नयणे मूरति निरखतां, समकित निर्मल थावह ॥२॥ आर्य सुहस्ती सूरीश्वरू, आगम सुत विवहार । भोजन रंक भणी दियउ, लीधउ संयम भार ॥३॥
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