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( २३०)
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
उपजइ एथ मनुष्य तप संयम करी,
सुख भोग वै ध्रम बेवता ए ॥२१॥
॥ कलश ॥
इम अल्प बहुत्व विचार चिहुँ दिशि,
सतर भेद जीवां तणउ । श्री पनवणा सूत्र पदे तीजे,
तिहां विस्तार छइ घणउ ॥ मंइ तुम्ह वचने स्तवन कीधौ,
समयसुंदर इम भणइ । मुझ कृपा करि वीतराग देव तु,
जिम देखू परतिख पणइ ॥२२॥
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गति आगति २४ दण्डक विचार स्तवनम्
श्री महावीर नमूकर जोड़ि, दण्डक मांहिं फेरा छोड़ि । चउचीसी दण्डक ना ए नाम, गति आगति करवाना ए ठाम ॥१॥ नारिक साते दंडक एक, असुरादिक ना दस प्रत्येक । पृथ्वी पाणी अग्नि नइ वायु, वनस्पति बलि पांचमी काय ॥२॥ ति चउरिन्द्री गर्भज वली, नर तिर्यंच कहा केवली। भवण जोतिष वैमानिक देव, चउवीस दंडक ए नित मेव ॥३॥
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