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चत्तारि-अटु-दस-दोय पद विचार गर्भित स्तवनम ( २२५ )
चउ चउगुणिये सोलहुय, अठ अठ गुणि चउसहि। दस दस गुणिया एकसउ, अद्विसयं परमहि ॥१०॥ दो उकिट्ट जहन्न पय, सत्तरि सय दस दिट्ट । पायकमल सवि प्रणमतां, दुख दोहग सवि नट्ठ ॥११॥ पूर्व विधि सहु एक सय, दुगुणा तिण सयसहि । पंच भरत जिन प्रणमियइ, त्रिण चउवीसि इगट्ठ ॥१२॥ चार गणा दस अंक किय,अठ सय चालीस आणि । पंच विदेहे खय दुग, तिरह काल जिन जाणि ॥१३॥ चार नाम जिन सासताए,अठ चउ अरय दु वंदि । दस ठवणारिय नरय सुर, गइ आगय दुय भेदि ॥१४॥ चउ अठ दस बावीस इम, वंश इक्खाग जिणंद । जग गुरु जग उद्योत कर, दो हरि वंश दिणंद ॥१५॥ अष्टापद गिरनार गिरे, पावा चंप चत्तारि । अठ दस दोय समेत शिखर सिद्ध नमूसुखकार ॥१६॥
॥ कलश ॥ इम थुण्या अरिहंत शास्त्र सम्मत, करिय तेरइ प्रकार ए। चत्तारि अठ दस दोय वंदिय, पद तणइ विस्तार ए। जिनचंद बंदन सकल चंदन, परम आणंद पाम ए। कर जोड़ि वाचक समयसुंदर, करइ नित परणाम ए॥१७॥
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