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________________ श्रीसामान्यजिन स्तवनम् ( २१६ ) श्री सामान्य जिन स्तवनम् प्रभु तेरो रूप बण्यौ अति नीको । प्र० । पञ्च वरण के पाट पटम्बर, पेच वण्यो कसत्री को। प्र०।१। मस्तक मुकुट काने दोय कुंडल, हार हियइ सिर टीको। समकित निर्मल होत सकल जन, देख दरस जिनजीको । प्र०१२। समवशरण बिच स्वामी विराजित, साहिब तीन दुनी को। समयसुन्दर कहइ ये प्रभु भेटे, जन्म सफल ताही को । प्र०।३। श्री सामान्य जिन स्तवनम् राग-पूरवी सरण ग्रही प्रभु तारी, अब मंइ सरण । मोह मिथ्यामत दूर करण कँ, प्रभु देख्या उपगारी । अ. स.।१॥ मोह सङ्कट से बौत उबारथा, अब की बेर हमारी । अ. स. २। समयसुन्दर की यही अरज है,चरण कमल बलिहारी। अ.स.।३। श्री अरिहंत पद स्तवनम् . राग-भूगल हां हो एक तिल दिल में आवि तु, करइ करम नउ नाश । अनन्त शक्ति छइ ताहरी. जिम वनहिं दहइ घास ॥ ए.॥१॥ हां हो नाम जपइ हियइ तु, नहीं तउ सिद्धि न होय । साद कीजइ ऊँचइ स्वरे, पण धरइ नहीं कोय ॥ ए० ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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