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________________ श्री महावीर जिन सुरियाम • टिक गीतम् ( २०६ ) वीर के वचन सुगत ही, हरखे गौतम सामि । समयसुन्दर गुण भाइ, वीर त अभिराम | ६ | हां० | इति श्री ऋषदत्त देवाणंद गीतम् ॥ ४२ ॥ [ लींबड़ी प्रति ] श्री महावीर जिन सुरियाभ नाटक गीतम् नाटक सुर विरचति सुरियाभ । कुमर कुमरी भमरी देवत, वीर कड़ गइ || ईई ईई त थेइ थेई, शब्द भाव भेद उचरति । धृर्मिक टिमक धीधी कटता दों मृदंग वागइ |१| ना० । अद्भुत रचि सोल भृङ्गार उरि, मनोहर मोतिहार । गीत गान कंठि मधुर आलापति चरणि लागइ || इया इया इया सुर की शक्ति, समयसुन्दर प्रभु की भक्ति । स्वर ग्रामे तान मूर्च्छना, स्वर मंडल भान नट गुँड राग | २ | ना० । श्री श्रेणिक विज्ञप्ति गर्भितं श्री महावीर गीतम् राग-कल्याण कृपानाथ तई कुहू नृधर्यउ री । कृ० । श्रेणिक राय वदति महावीर कुं, हमारी वेर क्युं अरज कर्यउ री ॥१॥ क० ॥ प्रतिबोध्यउ, जो तुम्ह कु उरि आइ लर्यो री । ars कोसि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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