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________________ श्री महावीरदेव श्रीतम् ( २०७ ) तारि तारि तीर्थंकर मोकू, पर उपगारी कृपा कर । समयसुंदर कह तू मेरउ साहिब, हूँ तेरह चरण कउ चाकर । ३ | म० ] श्री महावीर देव गीतम ढाल - १ भलउ रे थयउ म्हारह पूज्य जी पधारया २ भलु रे कीधु सामी नेम कुमार। सामी मुनइ तारउ भव पार उतारउ । साहिब आवागमरण निवारउ, महावीर जी सा० ॥ १॥ श्रांकणी ॥ सामी तुम्हे त्रिभुवन जनना आधार । सेवक नी करउ हिंव सार || महा०|| २ || सामी मोरइ एक तुम्हे अरिहंत देवा । भवि भवि देज्यो पाय सेवा || महा० || ३ || श्री वर्धमान नमु सिर नामी । समयसुन्दर चा स्वामी || महा०||४|| इति श्रीमहावीर देव गीतं सम्पूर्णम् ॥ १७ ॥ -X- श्री महावीर गोतम राम श्रीराग नाचति सुरिश्रम सुर वीर कह भागह कुमरिय कुमर अडोतर सउ रचि भगति जगति प्रभु चरण लागइ ||१ ना०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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