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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
प्रभु चतुर्गति भमि बहु दुह सही,
हुयउ निर्भय तुह सरपउ लही। भमिय बिहु खूणइ बिचि मई गबठ,
. जिसउ सोगाठ प्रभु निर्भय थयरउ ॥७॥ हिब अमीमय दृष्टि निहालियइ,
निम चिरंगत पाप पखालियइ । दुरिय दोहग दुख निवारियइ,
भव पयोनिधि पार उतारियड 1८॥ इम थुण्यउ प्रभु पास जिणेसरू,
भविय लोय प्रयोय दिनेसरू । सफल चीनतड़ी हिव कीजियइ,
समयसुन्दरि शिव सुह दीजियइ ।।६।। इति श्रीपार्श्वनाथस्य दृष्टान्तमयं मधुस्तवनं सम्पूर्णम् ।
भी जेसलमेर मण्डन महावीर जिन विज्ञप्ति स्तवन वीर सुणउ मोरी बीनती, कर जोड़ी हो कहुं मननी बात । बालक नी परि वीनधु, मोरा सामी हो त्रिभुवन तात।वी.१॥ तुम दरिसण विन हुंभम्यउ, भव माहि हो सामी समुद्र मझार । . दुख अनंता मई सबा, ते कहिता हो किम आवइ पार । वी.२॥
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