SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 371
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २०२) समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि प्रभु चतुर्गति भमि बहु दुह सही, हुयउ निर्भय तुह सरपउ लही। भमिय बिहु खूणइ बिचि मई गबठ, . जिसउ सोगाठ प्रभु निर्भय थयरउ ॥७॥ हिब अमीमय दृष्टि निहालियइ, निम चिरंगत पाप पखालियइ । दुरिय दोहग दुख निवारियइ, भव पयोनिधि पार उतारियड 1८॥ इम थुण्यउ प्रभु पास जिणेसरू, भविय लोय प्रयोय दिनेसरू । सफल चीनतड़ी हिव कीजियइ, समयसुन्दरि शिव सुह दीजियइ ।।६।। इति श्रीपार्श्वनाथस्य दृष्टान्तमयं मधुस्तवनं सम्पूर्णम् । भी जेसलमेर मण्डन महावीर जिन विज्ञप्ति स्तवन वीर सुणउ मोरी बीनती, कर जोड़ी हो कहुं मननी बात । बालक नी परि वीनधु, मोरा सामी हो त्रिभुवन तात।वी.१॥ तुम दरिसण विन हुंभम्यउ, भव माहि हो सामी समुद्र मझार । . दुख अनंता मई सबा, ते कहिता हो किम आवइ पार । वी.२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy