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________________ संस्कृत प्राकृत भाषामय पाश्व नाथ लघु स्तवनम् (१८३ ) जहा मेह-रेहं पदट्ठ ण मोरा, यथा वा विधो दर्शनं सच्चकोराः ॥ ४ ॥ हवे जत्थ दिट्ठा जिणाणं पसन्ना, गता तेभ्य आपनितान्तं निखिन्ना । पगासो सिया जत्थ सूरस्स सारं कथं तत्र तिष्ठेत्कदाप्यन्धकारम् ॥ ५ ॥ तुमं नाम चिंतामणि जस्स चित्ते, विभो कामितिस्तस्य संपत्ति-वित्त । जो पुप्फकालंमि पत्तणणेया, वणस्सेणि पुष्पान-माला-प्रमेया ॥ ६ ॥ मए बंदिया अज तुम्हाण पाया, नितान्त गता मेऽद्य सर्वेप्यपाया । जहा सुट्ठ दट्टण दुटुंच मोरा, भुजङ्गा व्रजेयुर्भियात्यंत-घोरा ॥ ७ ॥ अहो अज मे वंछिअत्थस्समाला, फलत्पाश्व नाथ-प्रसादा-द्विशाला । जहा मेह--धाराभि-सित्ताण वीणा, समद्धा भवेतिक न वल्ली न रीणा ॥ ८ ॥ इय पागय-भासाए संस्कृत-वाण्या च संस्तुतः पावः। भत्तस्स समयसुदर-गणेमनो-बांछितं देयात् ॥६॥ ॥ इति अर्धप्राकृत-अर्द्ध संस्कृतमयं श्रीपार्श्वनाथलघुस्तवनम् ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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