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________________ श्री नारंग पार्श्वनाथ स्तवनम् ( १७५ ) हाटे घर बइठा धन खाउ, सखरइ व्यापार तराउ साटउ । दरिय देसांतर कांड फिरउ, नित समरउ श्री नारंगपुरउ |२| राजा कर तेहिज अंग घाउ, उपर सही बोल हुवइ आपणउ । झगड़इ कांटइ तुम कांइ डरउ, नित समरउ श्री नारंगपुरउ | ३ | तुम दड़ देवालय मति जावउ, मिथ्यात्त्व देव नइ मतिध्यावउ । पुत्र रत्न ल हिस्यति सफरउ, नित समरउ श्री नारंगपुरउ | ४ | नख यख नइ मुख कूख तणी, स्वास खास नई ज्वर रोग घणी । जाय ते भाज तुरत अरउ, नित समरउ श्री नारंगपुरउ | ५ | भील कोली मणा मीर तथा मारग में भय अत्यंत घणा । मत बीउ धीरज नित्य धरउ, नित समरउ श्री नारंगपुरउ | ६ | व्यंतर नइ राक्षस वैताला, भूत प्रेत भ्रमइ हग हग वेला । साकण डाकण डर कांइ डरउ, नित समरउ श्री नारंगपुरउ |७| परिवार कुटुम्ब सहु को मानइ, सौभाग्य सुजस बघते वानर । वलिन हुवइ बैंक किसी बातरउ, नित समरउ श्री नारंगपुरउ | ८ | आणंद घुरउ तुम इह लोकह, शिव सुख पिण करइ परलोक । भौ समय सुंदर भव समुद्र तरउ, नित समरउ श्री नारंगपुर 1६1 - श्री वाडी पार्श्वनाथ भास चउमुख बाड़ी पास जी, सुन्दर मूरति सोहइ मेरे लाल । नित नित नयणे निरखतां, Jain Educationa International भविण ना मन मोहइ मेरे लाल |१| च० | For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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