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________________ ( ३१ ) विविध प्रकार की सहायता मिली है। २७ वर्षों से हम जो निरन्तर इस सम्बन्ध में कार्य करते रहे हैं. उनमें इतने अधिक व्यक्तियों का सहयोग है कि जिनकी स्मृति बनाये रखना भी सम्भव नहीं । इसलिये जो सहज रूप में स्मरण आरहे हैं. उन्हीं का उल्लेख कर अवशेष सभी के लिये आमार प्रदर्शित करते हैं। ___सबसे पहले जिनकृपाचन्द्रसूरिजी, उपाध्याय सुखसागरजी, बीकानेर के भण्डारों के संरक्षक, फिर स्वर्गीय मोहनलाल दलीचन्द देसाई, ३० यति नेमचन्द जी बाड़मेर, पन्यास केशरमुनिजी और वाहर के अनेक भण्डारों के संरक्षकगण, फूलचन्दजी झाबक, मुनि गुलाबमुनिजी, आनन्दसागरसूरिजी, स्व पूर्णचन्द्रजी नाहर आदि से जो कवि की रचनाओं की उपलब्धि और अन्य प्रकार की सहायता मिली है, उसके लिये हम उनके बहुत आभारी हैं । अन्त में महोपाध्याय विनयसागरजी, जिन्होंने इस सारे ग्रंथ का प्रफ संशोधन का और कवि के विषय में अध्ययनपूर्ण निवन्ध लिखकर हमारे काम में बड़ी आत्मीयता के साथ हाथ बँटाया है, उनके हम बहुत ही उपकृत हैं। हिन्दी साहित्य महारथी विद्वान् मित्र डा० हजारीप्रसादजी द्विवेदी ने हमारे इस ग्रंथ की भूमिका लिख भेजी है। जिसके लिये हम उनके बहुत आभारी हैं। इस ग्रन्थ के प्रकाशन में एक प्रेरणा रूप श्री अनोपचन्दजी झाबक, कनूर ने हमें रु०१५१) अपनी सद्भावना से भेजकर इस ग्रंथ को तत्काल प्रेस में देने को प्रेरित किया, अतः वे भो स्मरणीय है। __कवि की लिखी हुई सैंकड़ों प्रतियों और फुटकर पत्र हमारे संग्रह में है। उनमें से संवतोल्लेख वाले २ पत्रों का सम्मिलित ब्लॉक इस ग्रन्थ में छपाया जा रहा है। कवि का कोई चित्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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