________________
श्री गौड़ी पार्श्वनाथ स्तवनम्
(१६७ )
नोलड़े घोड़इ चढि असवार, रक्षा करइ संघ नी यक्ष सार ॥६॥ गौ०॥ गरुयडि गाजइ गोड़ी पास, समयसुन्दर कहइ पूरउ आस ॥७॥ गौ०॥
(३) सग-गउड़ी परतिख पारसनाथ तु गउड़ी । प० । लोक मिलइ यात्रा लख कउड़ी, चरण कमल प्रणमे कर जोड़ी॥५०॥१॥ हुये इण देव तणी किण होड़ी,
और देव इण आगइ कौड़ी ॥ १० ॥२॥ दरशन दउलति आवइ दउड़ी, समयसुन्दर गुण गावइ गौड़ी ॥५०॥३॥
(४) राग-श्री तीरथ भेटन गई, सखि हुँ हरषित भई। परतिख गउड़ी पास पूठउ, पूरवइ मन आस । सेवक ल्यउरी सेवक ल्यउ। नीलड़े घोड़े चढी आवइ, पूरवइ मन आस ॥से० ॥१॥ अपुत्रियां पुत्र आपू, दुखिया को दुख कापू, अड़वड्यां आधार । निर्धनियां नइ धन आपू, भलै धन भण्डार ॥ से० ॥२॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org