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श्री संखेश्वर पार्श्वजिन स्तवनम् (१६३ ) एकंतर ताप सीयउ दाह, उखध विण जायइ थइ माहू । दूखइ नहीं माथउ पग गोड़उ, नित नाम जपउ श्री नाकउड़उ ।। न पड़इ दुरभिक्ष दुकाल कदा, शुभ वृष्टि सुभिक्ष सुगाल सदा। ततखिन तुम्हें अशुभ करम तोड़उ,नितनाम जपउ श्री नाकउड़उ ।६। तू' जागतउ तीरथ पास पहू, जाणइ ए वात जगत्र सहू । मुझ नइ भव दुखु थकी छोड़उ, नितनाम जपउ श्री नाकउड़उ । श्रीपास महेवापुर नगरे, मंइ भेट्यउ जिनवर हरख भरे। इम समयसुन्दर कहइ गुण जोड़उ, नितनाम जपउश्री नाकउड़उ।। इति श्री महेवा मंडण श्री नाकउड़ा पार्श्वनाथ लघु स्तवनं सम्पूर्णम् ।
श्री संखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन्
(१) राग-मल्हार मिश्र परचा पूरइ पृथ्वी तणा, यात्रा भणी लोक आवइ घणा । अति सुन्दर सोहइ देहरउ, साचउ देवत संखेश्वरउ ॥१॥ आराधे जे नर इकमना, एह लोक नी कामना । तुरत फले वंछित तेहरउ, साचउ देवत संखेश्वरउ ॥२॥ सुन्दर मूरति सोहामणी, रूड़ी नइ बलि रलियामणी। काने कुंडल सिर सेहरउ, साचउ देवत संखेश्वरउ ॥३॥ केसर चंदन पूजा करउ, ध्यान एक भगवंत नउ धरउ। संकट कष्ट नहीं केहरउ, साचउ देवत संखेश्वरउ ॥४॥
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